सावन लगाती है अगन कोई ये सावन जलाती है तन मन ये सावन बुझाती है तपिश धरातल की और बढाती है मेरी तपन ये ये सावन बारिश के साथ हवाओ झोका लाती है मीठी चुभन ये सावन खलती है कमी इस क्षण किसी की उकसाती है मदन ये सावन भटकता है मन किसी हसीन वादीओ और सुलगाती है बदन ये सावन -योगी जगमोहन
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